हिंदी व्याकरण, भाषा का अर्ध और परिभाषा, हिंदी की बोलियां व उपबोलियां, व्याकरण व लिपि की परिभाषा
परिचय -
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं | इसलिए उसे समाज के अन्य सदस्यों के साथ अपने विचारों, अपने दुखों- सुखों, अपनी भावनाओं का आदान प्रदान करना होता है। पारस्परिक संपर्क के लिए मनुष्य को भाषा की आवश्यकता होती हैं, क्योंकि विचारों की अभिव्यक्ति सर्वग्राह्य भाषा के बिना संभव नहीं हैं। इस प्रकार मानव सभ्यता के साथ साथ भाषा का भी प्रदुर्भाव हुआ।
हिंदी भाषा भारतीय महाद्वीप में बोली जाती है और लगभग 49.5 करोड लोग इसे अपने मातृभाषा के रूप में बोलते हैं । यह एक सुंदर, सरल और मधुर भाषा है, जिसे बहुत सारे लोग पसंद करते हैं। इसके अलावा हिंदी पढ़ना, लिखना और समझना भी सीखने की माध्यम होती है। हम बात करेंगे हिंदी व्याकरण से जुड़ी कुछ मुख्य तत्वों के बारे में और इसके महत्व को समझेंगे।
भाषा का अर्थ और परिभाषा
भाषा वह साधन हैं जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों एवं भावों को दूसरो के समक्ष प्रस्तुत करता हैं तथा दूसरों के विचारों को स्वयं समझकर उन्हें ग्रहण करता हैं अर्थात् पूर्ण निश्चित ध्वनि या संकेतो का वह समूह जो मनुष्य के पारस्परिक संपर्क को गहन बनाकर विचारों की अभिव्यक्ति में सहायता करता है, उसे भाषा कहते हैं।
भाषा मनुष्य के मुख से उच्चारित होती हैं । हम भिन्न भिन्न ध्वनियों का उच्चारण करते हैं इन ध्वनियों के परस्पर मेल से शब्द बनते हैं जैसे- ल, प, क | इन ध्वनियों से हम लपक, पलक जैसे शब्द बना सकते हैं, किंतु इन्ही ध्वनियों से बनने वाले अर्थहीन शब्दों को शब्द नही कहा जा सकता । दूसरे शब्दों में भावों या विचारों के लिए प्रयुक्त अर्थपूर्ण ध्वनि या ध्वनि संकेत की व्यवस्था ही भाषा हैं।
भाषा के रूप, भाषा के कितने रूप है ?
मानव ने अपने विचारों को अभिव्यक करने के लिए भाषा का विकास किया है। तथा इसके लिए उसने भाषा के अनेक रूपों को अपनाया है , किंतु आज सामान्यत भाषा की अभिव्यक्ति के ये दो रूप प्रचलित हैं-
1. मौखिक रूप।
2. लिखित रूप ।
1.मौखिक रूप -
मुख द्वारा उच्चारित भाषा अगर अर्थपूर्ण हो, तो वह मौखिक भाषा कहलाती हैं। भाषा का यह रूप मनुष्य को सहज ही सामाजिक परिवेश से मिल जाता हैं । मनुष्य जन्म लेने के साथ ही बोलना शुरू कर देता है। अतः मौखिक रूप ही भाषा का स्वाभाविक व मूल रूप कहा जा सकता है । शिक्षित और अशिक्षित दोनों ही मौखिक भाषा का प्रयोग कर सकते हैं। अंतर केवल इतना है कि पढ़े लिखे लोग अपेक्षाकृत शुद्ध भाषा का प्रयोग कर लेते है। प्रत्येक भाषा में अनेक ध्वनियां होती हैं। मौखिक भाषा की आधारभूत इकाई ध्वनि ही हैं। इन्हीं ध्वनियों के परस्पर संयोग से तरह तरह के शब्दों का निर्माण होता है, जो वाक्यों में प्रयुक्त होते हैं । भाषा का यह अस्थायी एवं क्षणिक रूप है।
2. लिखित रूप -
मानव सभ्यता के विकास के साथ साथ मनुष्य को दूरस्थ स्थानों में अपने विचारो एवं भावों को पहुचाने की आवश्यकता अनुभव हुई। तो उसने भाषा के लिखित रूप का विकास किया तथा इसके लिए उसने भाषा के भिन्न भिन्न चिन्हों का सहारा लिया । जिस प्रकार मौखिक भाषा की आधारभूत इकाई ध्वनि है वही लिखित भाषा की आधारभूत इकाई वर्ण हैं। लिखित भाषा, भाषा का स्थायी रूप है जिसमे हम अपने विचारो को पीढ़ियों तक संजोकर रख सकते हैं।
यूं तो हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है | लेकिन हिंदी भाषा का क्षेत्र भी अब बहुत व्यापक हो चुका है । यह भाषा बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल आदि भारतीय सीमाओं तक ही सीमित नहीं है, अपितु वर्मा, श्रीलंका, मॉरीशस, दक्षिण एवं पूर्वी अफ्रीका तक भी थोड़ा बहुत फैला हुआ है । हिंदी खड़ी बोली में विकसित है, लेकिन अलग-अलग क्षेत्र में इसी बोली में थोड़ी बहुत भिन्नता है, जैसे हिंदी में कहेंगे - मुझे एक गिलास पानी दे दीजिए तथा क्षेत्रीय भाषा में कहेंगे - हमरो को एक गिलास पानी दे हो ।
इस प्रकार हिंदी की बोलियों को अध्ययन की दृष्टि से 5 भागों में बांटा जा सकता है-
हिंदी की 5 प्रमुख बोलियाँ व 17 उप बोलियाँ -
1. पूर्वी हिंदी -
अवधी, छत्तीसगढ़ी तथा बघेली इसकी उपबोलियाँ है | तुलसीकृत रामचरितमानस अवधी भाषा में लिखा गया है ।
2. पश्चिमी हिंदी -
ब्रजभाषा, हरियाणवी, बुंदेलखंडी बोली तथा कन्नौजी इसकी उपबोलियाँ हैं | नंददास तथा सूरदास के कृष्ण भक्ति काव्य ब्रजभाषा में रचित है।
3. बिहार हिंदी -
झारखंड तथा बिहार प्रदेशों में प्रयुक्त बलियो के समूह इसी के अंतर्गत आते हैं | भोजपुरी, मैथिलि, मगही इसकी उपबोलियाँ है | मैथिली के आदि कवि विद्यापति की प्रसिद्ध पदावली मैथिली में ही रचित है।
4. राजस्थानी हिंदी -
राजस्थानी प्रदेश में प्रयुक्त बोलियों के समूह को राजस्थानी हिंदी कहते हैं | जयपुरी, मारवाड़ी, मेवाती, मालवी,आदि बोलियां इसी के अंतर्गत आते है।
5. पहाड़ी हिंदी -
भाषा की प्रमुख ईकाइयां
भाषा की मुख्य पांच ईकाइयां है -
1. ध्वनि-
मुख से निकले प्रत्येक स्वतंत्र स्वर को ध्वनि कहते हैं । तथाकथित एवं लिखित दोनों रूपों में ध्वनियों का प्रयोग किया जाता है।
2. वर्ण-
3. शब्द-
एक या एक से अधिक वर्णों से बनी स्वतंत्र सार्थक ध्वनि 'शब्द' कहलाती है।
जैसे- प+ल+क = पलक |
4. पद-
जब कोई शब्द वाक्य में प्रयुक्त होता है तो उसे पद कहा जाता है | यह व्याकरण के नियम में बंधा रहता है।
5. वाक्य-
किसी भी विचार को पूर्ण रूप से प्रकट करने वाला शब्द समूह वाक्य कहलाता है जैसे -
हिंदी भाषा की उपयोगिता अपनी सहजता, सरलता तथा सुबोध भाषा के कारण ही हिंदी विश्व की समस्त भाषाओं में तीसरा स्थान रखती है । भारत के बाहर भी दिनों-दिन हिंदी का प्रचार प्रसार बढ़ता जा रहा है। विश्व के अनेक महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ने का प्रबंध है । हिंदी का शब्द भंडार अत्यंत विस्तृत है तथा इसकी साहित्य परंपरा अत्यंत गौरवशाली है ।
व्याकरण व लिपि ( GRAMMAR & SCRIPT )
व्याकरण क्या है ? व्याकरण की परिभाषा लिखिए ?
व्याकरण शब्द की रचना वि+आ+करण से हुई है, इसका शाब्दिक अर्थ है ' विश्लेषण करना' | दूसरे शब्दों में भाषा की मानक लिपि क्या हो, वर्णों या अक्षरों का संयोजन कैसा हो, शब्दों की रचना कैसी होगी तथा वाक्य की संरचना में किन-किन बातों का ध्यान रखा जाए । इससे संबंधित प्रत्येक भाषा का अलग-अलग नियम होता है | इसकी व्याख्या तथा व्यवस्था करना व्याकरण का कार्य है | 'भाषा को शुद्ध पढ़ने, बोलने एवं लिखने का साधन ही व्याकरण है।'
व्याकरण के विभाग -
1. वर्ण विचार -
वर्ण विचार के अंतर्गत वर्णों के आकार, उच्चारण, वर्गीकरण, सहयोग एवं संधि के विषय के अनुसार विचार किया जाता है।
2. शब्द विचार -
3. वाक्य विचार -
वाक्य विचार के अंतर्गत वाक्य के भेद, उनके संबंध, वाक्य विश्लेषण, संश्लेषण आदि के विषय में नियम अनुसार विचार किया जाता है।
4. विराम चिन्ह विचार -
इसके अंतर्गत वाक्य में प्रयुक्त विभिन्न विराम चिन्हो एवं उनके प्रयोग का अध्ययन किया जाता है।
5. छंद विचार -
छंद विचार के अंतर्गत छंद की परिभाषा, उनके स्वरूप, भेद आदि का अध्ययन किया जाता है।
लिपि script
लिपि क्या है ? लिपि की परिभाषा ?
मौखिक ध्वनियों को लिखकर प्रकट करने के लिए निश्चित किए गए चिन्ह 'लिपि' कहलाते हैं। प्रत्येक भाषा की एक विशेष लिपि अवश्य होती है । जिस प्रकार अंग्रेजी भाषा की लिपि 'रोमन', पंजाबी भाषा की लिपि 'गुरुमुखी' तथा अरबी भाषा की लिपि 'अरबी' है। उसी प्रकार हिंदी एवं संस्कृत भाषा की लिपि 'देवनागरी' है । देवनागरी लिपि का विकास प्राचीन लिपि 'ब्राम्ही लिपि' से हुआ है । अरबी तथा फारसी लिपियां दाईं से बाईं और लिखी जाती है । भारत की बंगला, मराठी, गुजराती, पंजाबी, आदि भाषाओं की लिपियों का विकास ब्राह्मी लिपि से ही हुआ है।
समापन
धन्यवाद।