परिचय :
देवनागरी लिपि भारतीय सभ्यता का एक महत्वपूर्ण भाग है, और यह भारतीय उप महाद्वीप के कई भाषाओ के लिए मुख्य लिपि है | इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से हम देवनागरी लिपि के महत्त्व को समझेंगे और इसके विशेषता को जानेंगे |
देवनागरी लिपि का इतिहास (विकास )
लिखित वर्ण संकेतों की सहायता से भाव या विचार की अभिव्यक्ति लिपि कहलाती है। भाषा, श्रव्य होती है, जबकि लिपि दृश्य होती है।
भाषा की सभी लिपियां ब्राह्मी लिपि से ही निकलती है। ब्राह्मी लिपि का प्रयोग वैदिक आर्यों ने शुरू किया। ब्राह्मी लिपि का प्राचीनतम नमूना बौद्ध कालीन( 5वी सदी BC का ) है। गुप्तकाल के आरंभ में ब्राह्मी के दो भेद हुए, उत्तरी ब्राह्मी व दक्षिणी ब्राह्मी। दक्षिणी ब्राह्मणी से - तमिल लिपि, कलिंग लिपि, तेलुगु लिपि, कन्नड़ लिपि, ग्रंथ लिपि( तमिलनाडु ), मलयालम लिपि का विकास हुआ। 10वीं से 12वीं सदी के बीच इसी प्राचीन नागरी से उत्तरी भारत की अधिकांश आधुनिक लिपियों का विकास हुआ। इसकी दो शाखाएं मिलती है पश्चिमी व पूर्वी। पश्चिमी शाखा की सर्व प्रमुख लिपि देवनागरी लिपि है। पश्चिमी शाखा के अंतर्गत देवनागरी, राजस्थानी, गुजराती, महाजनी, कैथी आते हैं, तथा पूर्वी शाखा के अंतर्गत बांग्ला, असमी, उड़िया लिपि आते हैं। नागरी लिपि का प्रयोगकाल 8-9वी सदी ई. से प्रारंभ माना जाता है।
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देवनागरी लिपि |
देवनागरी लिपि का नामकरण व स्वरूप, उसके गुणदोष व विशेषताएं
देवनागरी लिपि का नामकरण पूर्णतः स्पष्ट नहीं है। ज्यादातर विद्वान गुजरात के नगर ब्राह्मणों से इसका संबंध जोड़ते हैं। उनका मानना है कि गुजरात में सर्वप्रथम प्रचलित होने से वहां के पंडित वर्ग ( नागर ब्राह्मण ) के नाम से इसे नागरी कहा गया। अपने अस्तित्व में आने की तुरंत बाद इसने देव भाषा संस्कृत को लिपिबद्ध किया इसलिए नागरी से देव शब्द जुड़कर देवनागरी लिपि हो गया।
यह अक्षरात्मक लिपि ( syllabic script) है, जबकि रोमन लिपि ( अंग्रेजी भाषा की लिपि Alphabetic script ) वर्णात्मक लिपि है। देवनागरी लिपि बाएं ओर से दाईं लिखी जाती है, जबकि फारसी, उर्दू, अरबी, भाषा की लिपि दाईं से बाईं ओर लिखी जाती है।
देवनागरी लिपि के गुण
- एक वर्ण से दूसरे वर्ण का भ्रम नहीं होता है।
- उच्चारण के सुक्ष्मतम भेद को भी प्रकट करने की क्षमता देवनागरी लिपि में है।
- वर्णमाला ध्वनि वैज्ञानिक पद्धति के बिल्कुल अनुरूप है ।
- प्रयोग बहुत ही व्यापक है अर्थात् यह अनेक भाषाओं की लिपि है ।
- भारत की अनेक लिपियों के निकट यह लिपि आती है अर्थात लिपियों में थोड़ी बहुत समानता है ।
- एक ध्वनि के लिए एक ही वर्ण संकेत का प्रयोग किया जाता है, जो ध्वनि का नाम है वही वर्ण का नाम होता है।
- इसमें कोई भी मूक वर्ण नहीं है, जो बोला जाता है वही लिखा जाता है ।
- एक वर्ण संकेत से एक ही ध्वनि व्यक्त की जाती है ।
देवनागरी लिपि के दोष
- त्वरापूर्ण लेखन नहीं क्योंकि लेखन में हाथ बार-बार उठाना पड़ता है।
- वर्णों की संयुक्तिकरण में र के प्रयोग को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है।
- वर्णों के संयुक्त करने की कोई निश्चित व्यवस्था नहीं है।
- अनुस्वार एवं अनुनासिकता के प्रयोग में एकरूपता का अभाव है ।
- 'इ' की मात्रा का लेखन वर्ण से पहले पर उच्चारण वर्ण के बाद होता है।
- समरूप वर्णों में भ्रम पैदा होता है जैसे घ में ध का, म में भ का भ्रम।
- शिरो रेखा का प्रयोग अनावश्यक अलंकरण के लिए होता है।
- देवनागरी लिपी का संकेत चिन्ह 403 प्रकार के होने के कारण लेखन , मुद्रण में कठिनाई होती है।
देवनागरी लिपि की विशेषताए
- ध्वनिप्रतीक; देवनागरी लिपि में हर स्वर और व्यंजन का एक विशिष्ट ध्वनि प्रतीक होता है जिससे भाषा की उच्चारण को सहायता मिलतीहै |
- सरल और सुन्दर लक्ष्य; देवनागरी लिपि का लक्ष्य बहुत ही सुन्दर व सरल लिखाई होती है, जिसका परिणाम स्वरूप हिंदी व संस्कृत की सुन्दरता का प्रतीक है |
- अक्षरों का सरल आकर; देवनागरी अक्षर सामान्यतः यौक्तिक व अकारण होते है, जिससे उन्हें आसानी से लिखा जा सकता है |
- स्वर व व्यंजन का स्पष्ट विभाग; इस लिपि में स्वर और व्यंजन का स्पष्ट और अलग अलग विभाग होता है, जिससे उच्चारण में सहायता मिलती है |
- सभी ग्रंथो में उपयोग; देवनागरीलिपि को भगवत गीता, रामायण, महाभारत और अन्य प्रमुख भारतीय पौराणिक ग्रंथों के लिए उपयोग किया गया है |
देवनागरी लिपि का हिंदी भाषा की अधिकृत लिपि के रूप में विकास
- विलियम प्राइस में हिंदुस्तानी विभाग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति ली । उन्होंने हिंदुस्तानी के नाम पर नागरी लिपि में लिखित हिंदी पर बल दिया ।
- राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद का लिपि संबंधी प्रतिवेदन उन्होंने भारतीय लिपि के स्थान पर नागरी लिपि और हिंदी भाषा के लिए पहला प्रयास किया । उनके लिपि संबंधी प्रतिवेदन मेमोरंडम कोर्ट कैरक्टर इन द अपर प्रोविंस ऑफ़ इंडिया से आरंभ हुआ।
- एक अंग्रेज अधिकारी फ्रेडरिक जान शोर ने फारसी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं के प्रयोग पर आपत्ति व्यक्त की और न्यायालय में हिंदुस्तानी भाषा और देवनागरी लिपि का समर्थन किया था।
- बंगाल के गवर्नर ऐसले ने देवनागरी के पक्ष में एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि फारसी, उर्दू आदि ऐसी भाषा के स्थान एक ऐसी भाषा प्रयोग मे जाए, जो एक हिंदुस्तानी फारसी से पूर्ण अनजान रहने पर भी बोलता है । वर्ष 1873 में बंगाल सरकार ने यह आदेश जारी किया कि पटना, भागलपुर तथा छोटा नागपुर के न्यायालयों व कार्यलयों में सभी घोषणाएं हिंदी भाषा तथा देवनागरी लिपि में जारी की जाए।
- 1874 ई. में पंडित गौरीदत्त ने अपने संपादकत्व में देवनागरी प्रकाशन नामक पत्र का प्रकाशन किया। नागरी लिपि के प्रचार के लिए की गई सेवाएं बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हुई।
- नागरी प्रचार व हिंदी भाषा के विकास के लिए नागरी प्रचारिणी सभा, काशी की स्थापना 1893 ई. में की गई। जिसका मुख्य कर्तव्य था कि नागरी लिपि का प्रयोग कचहरी में हो।
- सन 1897 में मालवीय जी ने एक पुस्तक कोर्ट कैरेक्टर एण्ड प्राइमरी एजुकेशन इन नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेज लिखी, जिसका नागरी लिपि के प्रचार पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। मालवीय जी ने एक प्रतिनिधि मंडल के साथ मिलकर हजारों हस्ताक्षरों से युक्त एक मेमोरियल तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर को दिया । अतः इनके परिणाम स्वरूप अदालतों में नागरी को प्रवेश मिल गया। इसलिए अदालतों में नागरी के प्रवेश का श्रेय मालवीय जी को दिया जाता है।
- अखिल भारतीय लिपि में देवनागरी लिपि के प्रथम प्रचारक शारदा चरण मित्र ( कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ) ने अगस्त 1907 ई. में एक लिपि विस्तार परिषद् नामक संस्था की स्थापना की। शारदा चरण ने इस संस्था की ओर से देवनागर पत्र प्रकाशित करके भारत की सभी भाषाओं के साहित्य को देवनागरी लिपि में प्रस्तुत करने का निर्णय लिया ।
- नेहरू रिपोर्ट 1928 ई. की भाषा लिपि संबंधी संस्तुति में कहा कि देवनागरी अथवा फारसी में लिखी जाने वाली हिंदुस्तानी भारत की राजभाषा होगी।
- 14 सितंबर 1949ई. को संविधान सभा ने भाषा संबंधित विधेयक पारित किया । जिसमे अनुच्छेद 343(1) में स्पष्ट रूप से घोषणा की गई कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। इस प्रकार लंबे संघर्ष के बाद देवनागरी लिपि हिंदी भाषा की एकमात्र और अधिकृत लिपि बन गई।
संक्षेप
देवनागरी लिपि भारतीय भाषायो के लिए महत्वपूर्ण है और यह भाषा की सही उच्चारण और स्वर व्यवस्था को समझने में मदद करती है | यह एक महत्वपूर्ण भाग है भारतीय सभ्यता का और इसका महत्त्व सिर्फ भाषा के अध्ययनार्थियों तक ही सिमित नहीं है |